________________
____३४२-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
होगी। परमात्मा के सान्निध्य में (समीप में ) आना ही योग है । कहा भी है। -- 'सयोगो योग इत्युक्तः ।' अर्थात परमात्मा के साथ जीवात्मा का सयोग होना ही योग कहलाता है । आत्मा और परमात्मा के बीच एकता स्थापित करने के लिए ही अष्टविध योग की क्रिया की जाती है । तुमसे कुछ अधिक नहीं हो सकता तो सत्य का अवश्य पालन करो । सत्याचरण करना भी आत्मा और परमात्मा के बीच एकता स्थापित करने का साधन है । तुम चाहे जैसी दुःखमय अवस्था मे होमो अगर तुम परमात्मारूपी जीवन से जीवित हो तो तुम्हारे आत्मा का कल्याण हुए बिना रह ही नहीं सकता । तथास्तु ।