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उनहत्तरवां बोल-३४१ सत्य भी स्थिर और शाश्वत है । सत्य सदा साथ ही रहता है । अतएव सत्य को जीवन में स्थान दो। सत्य को अपनाना भगवान् को अपनाना है ।
कहते हैं, एक बार कबीर ने चलती चक्की देखी और उसमें से गेहूं का भाटा निकलते देखा । यह देखकर उन्होने कहा
चलती चक्की देखकर दिया कबीरा रोय । दोनो पुड़ के बीच में, साबित बचा न कोय ॥
कबीर चलती चक्की देखकर रो पड़े और कहने लगेइस पृथ्वी और आकाशरूपी विश्वव्यापी चक्की के पाटो में से कोई भी जीव नही बचे सका । सभी को मरना पड़ा है। कवीर का यह कथन पास में खड़े एक मनुष्य ने सुना और वह बोला
चक्की चले तो चलन दे, सबका मैदा होय । कोले से लागे रहो, बाल न बांका होय ॥
अर्थात्-चक्की चलती है और गेहूं का आटा हो रहा है तो होने दो । अगर परमात्मा या सत्यरूपी कील को पकड़े रहोगे तो तुम्हारा बाल भी बांका नहीं हो सकता । कहा भो है:
परिवतिनि संसारे मतः को वा न जायते ।
अर्थात-इस परिवर्तनशील संसार में जो उत्पन्न होता है वह अवश्य मरता है ।
परन्तु जो सत्य की कीली को पकड़ रखता है, उसका कुछ भी नहीं बिगड़ता । उसकी रक्षा अवश्य होती है । अतएव परमात्मारूपी कीले को पकड़े रहो तो तुम्हारी रक्षा