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सत्यता औराहा धारण
परिणाम प्रो
३४०-सम्यक्त्वपराक्रम (५) और सरलता का परित्याग नहीं करते। शास्त्र में इस बात के ज्वलन्त उदाहरण मौज़द हैं कि सत्यता और सरलता के द्वारा किस प्रकार प्रात्मा का कल्याण किया जा सकता है। उन उदाहरणो में से अनेक उदाहरण तुम्हे सुनाये भी गये हैं । फिर भी तुम इस ओर पेक्षा ही धारण किये हो, यह उचित नही । सत्यता और सरलता की उपेक्षा करने का परिणाम आखिर वुग ही आता है । रावण ने साधु का वेष पहनकर कपटपूर्वक सीता का हरण किया और राम की मर्यादा का उल्लघन किया था । मगर जब उसका कपट खुल गया तो कितना भीषण परिणाम आया ? कपट प्रकट होने पर दुष्परिणाम होता ही है । अतएव कपट का त्याग करके सरल-सत्य व्यवहार करो । इससे अन्त में तुम्हारा भला ही होगा । अजना में कपट होता और सरलता न होती तो अन्ततः वह प्रकट हुए बिना न रहता । मगर उसमे सरलता थी और साथ ही सत्यता थी अतएव वह यही विचारती थी कि आखिर तो 'सत्यमेव जयते नानतम्' अर्थात् विजय सत्य की ही होती है।
श्रीभगवतीसूत्र में भगवान् से गौतम स्वामी ने प्रश्न किया है :
प्रश्न-से णण भंते ! अथिर पलोइ, थिरं न पलोट्टइ ? उत्तर-हंता, गोयमा !
अर्थात- हे भगवन् ! अस्थिर पलटता है मौर स्थिर नही पलटता है, यह बात सच है ? भगवान् उत्तर देते हैंहाँ, गौतम ! यह सच है।
यही वात सत्य के विषय मे समझना चाहिए, क्योंकि