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३४४-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
शब्दार्थ
प्रश्न- भगवन् ! लोभ को जीतने से जीव को क्या लाभ होता है ?
उत्तर- लोभ को जीतने से आत्मा सन्तोष प्राप्त करता है, लोभ-वेदनीय कर्मों का बध नही करता और पहले बन्धे कर्मों की निर्जरा करता है।
व्याख्यान
अवगुणों में लोभ सबसे बड़ा अवगुण है । लोभ से लौकिक हानि भी होती है और लोकोत्तर हानि भी होती है । लोभ का कही थोभ (विश्राम ) नही होता । इसी कारण लोभ को वैतरणी नदी की उपमा दी गई है। लोभतृष्णा कैसी है, इस विषय में एक कवि ने कहा है :--
आशानाम नदी मनोरथजला तृष्णातरङ्गाकुला, राग पाहवती वितर्कगहना धैर्य-द्रुमध्वसिनी । मोहावर्त्तसुदुस्तराऽतिगहना प्रोत्तङ्गचिन्तातटी, तस्या पारगता विशुद्धमनसो नन्दन्ति योगीश्वरा।
इस श्लोक में कवि कहता है कि आशा नदी-वैतरणी नदी के समान है। तृष्णा, लोभ, आशा, यह सब पर्यायवाची शब्द हैं । जो लोग इस तृष्णा नदी के प्रवाह में फंस जाते हैं, उनके हृदय में ऐसे अनेक संस्कार उत्पन्न होते हैं, जिनके कारण दुख भोगने पड़ते हैं और संसार में परिभ्रमण करना पड़ता है।
आशारूपी नदी में मनोरथरूपी जल भरा है । नदी