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अड़सठवां बोल-३२६
तो उसे अपने अंग पर शस्त्रक्रिया करानी ही होगी। पहले इन्जेक्शन लेने मात्र से शरीर ठीक हो सकता था, पर तब उसने वैद्य का कहना नहीं माना । अब शस्त्रक्रिया कराने का समय आ गया । अगर अव शस्त्रक्रिया नहीं कराता है तो प्राण जाने का वक्त आएगा।
इसी प्रकार इस समय कर्मरूपी जो रोग लगा है, वह धर्मक्रियारूपी दवा का नियमित सेवन करने से शान्त हो सकता है । अगर धर्मक्रियारूपी दवा सेवन न की गई या सेवन करने में देरी की गई तो कर्म रोग बढ़ जायेगा और परिणाम-स्वरूप इतना दुःख सहन करना पडेगा कि उसका कहना भी कठिन है । अतएव कर्मरोग को उपशान्त करने के विषय मे गम्भीर विचार करो। ज्ञानीजनो ने तपश्चर्या मादि प्राध्यात्मिक औषधो द्वारा उसे शान्त करने का जो अमोघ उपाय बतलाया है, उसे भलीभाति काम मे लाओगे तो तुम्हारा कर्म रोग शांत हो ज येगा और अधिक दु.ख भी सहन नहीं करना पडेगा ।
कुछ लोग कहते हैं कि धर्मकिया करने में कष्ट सहन करना पड़ता है । परन्तु ज्ञानियो का कथन है कि कष्ट धर्म करने से नहीं वरन् पूर्व कर्म से होता है । अगर धर्माराधन करते समय होने वाले कष्ट सहन कर लिये जायें तो कर्मोदय के कारण होने वाले कष्टो से सहज ही छुटकारा मिल सकता है । ऐसी दशा मे अगर थोडा कष्ट सहकर भी भविष्य में आने वाले भयानक दु खो से बचाव हो सके तो क्या बुगई है?
कहने का आशय यह है कि अगर मान-जन्य कर्मों