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३३४-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
वक्षो में भी जो वृक्ष नम्र रहता है वह अच्छा समझा जाता है और जो अकडा रहता है वह ठूठ कहलाता है । नम्र वृक्ष मे फल भी रसीले और मीठे लगते हैं, जबकि अकडे रहने वाले वृक्ष के फल कटुक और खराब होते हैं । उदाहरणार्थ- आम और एरण्ड को देखो । आम नम्र होता है तो उसके फल मधुर और सुन्दर होते हैं । एरण्ड प्रवडा रहता है तो उसके फल कटक होते हैं । इस प्रकार जहा नम्रता होती है वहां अन्यान्य गुण भी पा जाते हैं। कहावत भी है-'जो नमता है वह परमात्मा को गमता है।' अर्थात जो नम्रता धारण करता है वह परमात्मा का भी प्रिय बन सकता है ।
इसलिए तुम अपने जीवन में नम्रता को स्थान दो। नम्रता स्वार्थ की पूर्ति करने के लिए भी धारण की जाती है । मगर स्वार्थ की पूर्ति के लिए धारण की गई नम्रता मे और अभिमान के त्याग से आने वाली नम्रता मे बहुत अन्तर है । यहाँ जिस नम्रता की बात चल रही है, वह अभिमान का त्याग करके उत्पन्न करनी है। अभिमान करने से प्रात्मगौरव की भी रक्षा नही हो सकती । अत्मगौरव की रक्षा तो अभिमान त्यागने से ही होती है इसके अतिरिक्त अभिमान त्यागने से तथा जीवन मे निरभिमानिता तथा नम्रता को स्थान देने से मान-जन्य कर्म भी नही बघते और मान के कारण पहले बन्धे हुए कर्मों की निर्जग हो जाती है । अतएव अभिमान त्यागने का प्रयत्न करो और नम्रता धारण करो । ऐसा करने मे ही मनुष्यजन्म की सार्थकता और सफलता है ।