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सड़सठवां बोल-३२१
लिए नही जा सकते । क्रोध को उपशांत किये बिना तुम लाये हुए आहार-पानी का उपभोग नहीं कर सकते, विहार नही कर सकते. यहा तक कि शौच के लिए भी नहीं जा सकते । कदाचित् तुम कहोगे कि जिसके साथ क्लेश हुआ है, उसे क्षमा कर मैं उपशाति करता हूं लेकिन सामने वाला शात नही होता तो मैं क्या करूँ ? इस प्रश्न के उत्तर मे शास्त्र कहता है-- सामने वाला उपशात हो या न हो, यह उसकी इच्छा पर निर्भर है, किन्तु तुम तो क्षमा का याचनप्रदान करके उपशात बनो ! इससे तुम आराधक ही रहोगे ।
क्रोध को जीतने का सरल उपाय क्षमा ही है । दस प्रकार के यतिधर्म मे भी क्षमा को ही सर्वप्रथम स्थान दिया गया है । कारण यह है कि जैसे समस्त पदार्थों के लिए पृथ्वी ही आधार है, उसी प्रकार क्षमा ही समस्त गुणो का आधार है । आधारभूत पृथ्वी ही स्थिर न रहे तो आधेय पदार्थ किस प्रकार स्थिर रह सकेंगे? इसी प्रकार सब गुणो का आधार क्षमा ही न रही तो दूसरे गुण किस प्रकार टिक सकेगे ? अतएव क्षमा की सर्वप्रथम आवश्यकता है । साधुओ . का वर्णन करते हुए कहा है :--
पहलु लक्षण साधुनु, क्षमा तणो भडार । कठिन वचन सहे जगतनां, क्रोध न करे लिगार ।।
तुम लोग प्रतिक्रमण मे 'इच्छामि खमासमणो' का पाठ बोलते हो, कि--' हे क्षमाश्रमण ! मैं तुम्हे वन्दन करता __ हूं।' साधुओ मे क्षमा के साथ और-और गुण भा होते हैं,
मगर क्षमागुण की प्रधानता के कारण ही उन्हे क्षमाश्रमण' कहते हैं । साधु का प्रधान गुण क्षमा ही है और इसी