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उनसठवां बोल-२८१
से जीवात्मा को क्या लाभ होता है, इस प्रश्न के उत्तर मे भगवान् ने कहा ही है कि श्रुतज्ञान द्वारा जीवात्मा सब पदार्थों के यथार्थभाव को जान सकता है । प्रत्यक्षज्ञानियो ने जो कुछ देखा है, वह श्रुतज्ञान से ही जाना जा सकता है । उदाहरणार्थ- हम लोगो ने मेरु पर्वत नही देखा है. परन्तु जिनके ज्ञान का आवरण हट गया है और जिन्हे प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त हो गया है, उन्होने मेरु पर्वत देखा है । अतएव हम लोग श्रुतज्ञान से मेरु पर्वत जानते हैं। प्रत्यक्षज्ञानी पदार्थों को प्रत्यक्ष देखते हैं, परन्तु श्रुतज्ञानी, प्रत्यक्षज्ञानी द्वारा देखे हुए पदार्थों को श्रुतज्ञान से जानकर उन पर श्रद्धा रखता है । भगवान् महावीर ने जो कुछ देखा या जाना था उसे हम प्रत्यक्ष रूप से नही देख सकते । भगवान द्वारा देखो और जानी हुई वस्तु हम लोग श्रुतज्ञान से जान सकते हैं। इसी कारण श्रीदशवकालिक सूत्र के चौथे अध्ययन मे श्रुतज्ञान की महिमा बतलाते हुए कहा है -
सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावग । उभय पि जाणइ सोच्चा, ज सेयं त समायरे ॥
अर्थात् पुण्य को भी मुनकर जान सकते हैं और पाप को भी सुनकर जान सकते हैं तथा पुण्य-पाप को भी सुनकर जान सकते हैं अतएव श्रुतज्ञान प्रप्त करके जो कल्याणकारी हो उसी का आचरण करो।
पुण्य-पाप सुनकर ही जाना जा सकता है, परन्तु सुनकर हमे करना क्या चाहिए. इस सम्बन्ध में कहा गया है --
श्रयता धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम् । प्रात्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।।