________________
सड़सठवां बोल
क्रोधविजय
पिछले बोल में इन्द्रिय-निग्रह के सम्बन्ध में विवेचन किया गया है। इद्रियो का निग्रह करने से राग और द्वष जीते जा सकते हैं और इसी कारण लोग इंद्रियो को जीतने के लिए अनेक प्रकार के प्रयत्न करते हैं । इन्द्रियनिग्रह से जीते जाने वाले राग और द्वेष, क्रोध, मान, माया और लोभ से उत्पन्न होते हैं । इसलिए अब गौतम स्वामी यह प्रश्न करते हैं कि क्रोध आदि कषाय किस प्रकार जीते जा सकते हैं और उनके जीतने से आत्मा को क्या लाभ होता है ?
मूलपाठ प्रश्न-कोहविजएणं भते ! जीवे कि जणयइ ?
उत्तर- कोहविजएणं खंति जणयइ, कोहवेयणिज्ज कम्मं न बधइ, पुन्वबद्ध च निज्जरेइ ।। ६७ ।।
शब्दार्थ प्रश्न-भगवन् ! क्रोध को जीतने से प्रात्मा को क्या लाभ होता है ?