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सड़सठवां बोल- ३१५
उत्तर - गौतम ! क्रोध को जीतने से जीव क्षमा गुण प्राप्त करता है, क्रोध से उत्पन्न होने वाले कर्मों का बन्ध नही करता और पहले बन्धे हुए कर्मों का क्षय करता है ।
व्याख्यान
भगवान् ने क्रोध को जीतने से होना कहा है । नाम से तो क्षमा को मगर वास्तविक क्षमा कैसी होती है को मालूम है । क्रोध की उत्पत्ति के चरितार्थ करने की शक्ति मौजूद होने होने देना ही असली क्षमा है ।
क्षमा गुण का प्रकट सभी लोग जानते हैं यह वहुत कम लोगों कारण और क्रोध के पर भी क्रोध न पैदा
क्षमा धारण करना तलवार की धार पर चलने के समान कठिन काम है । कभी-कभी शस्त्र का प्रघात सहन कर लेना सरल होता है, परन्तु वचन का आघात शस्त्र के आघात की अपेक्षा अधिक दुखदायक होता है । इसी कारण कटुक वचन सुनकर क्षमाशील रहना मुश्किल हो जाता है । शास्त्रकार कहते हैं— लोहे के तीखे वाण सह लेना सरल है, पर वचन वाण सहना कठिन है । शास्त्र मे कहा है
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मुहुत्तदुक्खा हु हवंति कटया, अनोमया ते वि तम्रो सुउद्धरा । वाया दुरुत्ताणि दुरुद्वाराणि, वेराणुबंधाणि महत्भयाणि ॥ ( दस०, ६- ३-७ )
अर्थात् — लोहे के कांटों को सह लेना, उन्हे निकाल - कर बाहर फेक देना तथा उनकी पीड़ा से मुक्त हो जाना इतना ज्यादा कठिन नही है, मगर वचन वाण का श्राघात महाभयानक, दुःखदायक तथा वैर का अनुबन्ध कराने वाला