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३१६-सम्यक्त्वपराक्रम (५) होने के कारण सहन करना कठिन है ।
तात्पर्य यह है कि कटक वचन सुनकर क्रोध आना स्वाभाविक है । क्रोध आने पर क्षमा धारण करने वाले बहुत थोडे होते है । क्रोध का परिणाम कितना बुरा होता है, इस सम्बन्च मे शास्त्र में कहा है -
कोहो पोइ पणासेइ, माणो विणयनासणो । मायामित्ताणि नासेइ, लोहो सव्वविणासणो ।
(दस० ८-३७) इस गाथा मे शास्त्रकार ने कहा है कि जब क्रोध उत्पन्न होता है तो प्रीति नष्ट हो जाती है और अनुकम्पा का भी नाश हो जाता है । इस प्रीतिनाशक क्रोध को क्षमा के द्वारा ही जीतना चाहिए । क्रोध को जीत लेने से क्षमा प्रकट होती है और क्षमा के होने पर क्रोध जीता जा सकता है । इस प्रकार क्रोधविजय और क्षमा मे अन्योन्य सम्बन्ध है।
जब कोई कटुक वचन कहता है तभी क्रोध और क्षमा की परीक्षा होती है । कहा भी है -
जी जी कर बतलावतां, काने क्रोध न प्राय । पाड़ा टेढ़ा बोलतां, खबर क्षमा की थाय ।।
अर्थात् - जब कोई नम्रता-पूर्वक बोल रहा हो तो सामने वाले को क्रोध उत्पन्न ही कैसे होगा ? यह क्रोधी है या क्षमावान् है. इस बात की परीक्षा तो तभी होती है जब उससे आडे टेढे वचन बोले जाए ।
तुम लोग हमारे साथ भक्तिपूर्वक बातचीत करते हो और हमारे प्रति नम्रता का व्यवहार रखते हो। ऐसी दशा मे हमे क्रोध क्यो उत्पन्न होगा ? हाँ, कही बाहर जाने पर