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सड़सठवां बोल-३१७
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हमें कटुक वचन सुनने पड़ें और उस वक्त भी हम क्रोध न करें, वरन् क्षमा रखें, तभी कहा जा सकता है कि हमने क्रोध पर विजय पा लो है।
जब क्रोध उत्पन्न हो तब ऐसा विचार करना चाहिए कि यह कटक वचन इस बात की कसौटी हैं कि हमारे अन्त करण में क्षमा है या नहीं ? कसौटी पर चढाने से ही खरे सोने का पता चलता है। इसी प्रकार कटुक वचन की कसौटी पर ही क्षमा की परीक्षा होती है ।
श्रोध करने से कितनी अधिक हानियाँ होती हैं, इस विषय मे कहा है.
कोहो अप्पीइकरो उज्वेयरो य सगइनिद्दलणो । वेरणुबधज्जलणो जलणो वरगुणगण-वणस्स ॥ कोहंधा निहणंति पुत्तं मित्तं गुरुं कलत्तं च । जणय जणि अप्पि पि निग्वणा कि च न कुणंति ॥ कोहगी पज्जलियो न केवलं दहइ अप्पणो देह । सत्ताविईय परपिह पहवइ परभवविणासाय । ता कोहमहाजलणो विज्झबियव्वो खमाजलेण सया।।
यहां कहा गया है कि क्रोध अप्रीति उत्पन्न करता है, उद्वेग पंदा करता है और सद्गति का नाश करता है । क्रोध वैरानुबन्ध का बाप है और सद्गुणो के समूह रूपी वन को भस्म कर देता है। क्रोधाग्नि दूसरो को ही नही जलाती किन्तु क्रोधी को भी अवश्य जलाती है। क्रोध यह भव भी विगाड़ देता है और पर भव भी विगाड देता है । अत: इस क्रोधाग्नि को क्षमा के जल से सदा बुझाना चाहिए ।
क्रोध अग्नि से भी अधिक भयानक है । अग्नि एक