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साठवा बोल-२६१
धारक, समर्थ तथा व्रतपानन मे दृढ हो, वही यहां पधारें, क्योकि यहा राजा की तरफ से, धर्मश्रद्धा से विचलित करने के लिए छल किया जाता है । यहा कोई साधारण साधु न पधारें । इस सूचना पर ध्यान न देकर अगर कोई साधारण साधु यहा पधारेंगे तो वे रजा के कपट-जाल में फंस जाएँगे और नतीजा यह होगा कि धर्म की अवहे नना होगी। रानी को इस सूचना के कारण श्रेणक के र ज्य में समर्थ साधु हो प्राते थे । सामान्य साधुओ ने तो उनके राज्य मे जाना भी बन्द कर दिया था ।
एक महात्मा ग्रामानुग्राम विचरते हुए राजगह में पधारे । राजा ने सुना कि रानो के गुरु गजधानी मे पाये हैं । यह सुनकर उसने सोचा- रानी के गुरु को अपमानित करने का यह ठीक अवसर हाथ लगा है । रानी का गुरु भ्रष्ट होगा तो रानी का धर्मगौरव भी हल्का पड जायेगा ।
इस प्रकार विचार कर राजा ने एक वेश्या को बुलाकर कहा-- तू उस साधु के स्थान पर जा और किसी भी उपाय से उसे भ्रष्ट करके वापिस यहा प्रा । तू मेरा यह काम कर देगी तो तुझे मुह-मागा इनाम दूगा । वेश्या तो राजा का काम मुफ्त में ही करने को तैयार थी, तिस पर राजा की सहायता मौर इनाम मिलने की आशा से उसने तुरन्त हाँ भर ली । वह सिंगार सजकर और कामोत्तेजक अन्य सामान लेकर साधु के स्थान पर गई। साधु ने उसे देखते ही कहा-'खबरदार | रात्रि के समय हमारे स्थान पर स्त्रियो का आना निषिद्ध है । यह कोई गृहस्थ का मकान नही है । यहा साधु रहते हैं।'
वेश्या बोली-महाराज | मापका कहना सही है, मगर