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धासठ से छांसटवां बोल-३०३
आत्मवमन करने के लिए इन्द्रियो का निग्रह करना आवश्यक है । इन्द्रियो का निग्रह किये बिना आत्मविजय प्राप्त नहीं की जा सकती । आत्मा का कल्याण करने के लिए श्रोत्रन्द्रिय आदि का निग्रह करना आवश्यक है । इसलिए श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षु इन्द्रिय आदि इन्द्रियो का निग्रह करने से जीव को क्या लाभ होता है, इस सम्बन्ध मे गौतम स्वामी भगवान महावीर से प्रश्न करते हैं:
मूलपाठ प्रश्न-सोइंदियनिग्गहेण भंते ! जीवे कि जणयइ ?
उत्तर- सोई दिय निग्गहेणं मणुनामणनेसु सद्देसु रागदोसनिग्गह जणयइ, तप्पच्चइय कम्मं न बघइ. पुव्वबद्ध च निज्जरेइ ॥ ६२ ।।
प्रश्न--चक्खिन्दियनिग्गहेणं भते ! जीवे कि जणयइ ?
उत्तर-- चक्खिन्दिय निग्गहेण मणुनामणुन्नेसु रुवेसु रागदोसनिग्गहं जणयह, तप्पच्चइय करम न बबइ, पुव्वबद्ध च निज्जरेइ ।। ६३ ।।
प्रश्न-पाणिन्दियनिग्गहेण भंते ! जीवे कि जणयइ ?
उत्तर - घाणिन्दियनिग्गहेण मणण्णामणुण्णेमु गधेसु रागदोसनिग्गहं जणयइ, तप्पच्चइयं कस्म न बधइ, पुव्वबद्ध च निज्जरेइ ।। ६४ ॥
प्रश्न जिन्भिन्दियनिग्गहेणं भते ! जीवे कि जणयइ ?
उत्तर- जिभिम्दियनिगाहेण मणुण्णामणुण्णेसु रसेसु रागदोसनिग्गह जणयइ, तप्पच्चइयं कम्मं न बधइ, पुवबद्ध च निज्जरेइ॥६५॥