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बासठ से छांसठवां बोल-३०९
करू? इस प्रकार विचार करने से इद्रियविजय प्राप्त होती है। पदार्थ किस प्रकार परिवर्तनशील हैं, यह बात एक शास्त्रप्रसिद्ध उदाहरण द्वारा समझाता हूं.
जित्रशत्रु नामक एक राजा था । उसके प्रधान का नाम सुबुद्धि था । सुबुद्धि बडा विचारशील था । एक दिन सुबुद्धि राजा के साथ भोजन करने बैठा था । भोजन स्वादिष्ट था । राजा ने प्रधान से कहा- 'देखो, कितना स्वादिष्ट भोजन है ! ' राजा के इस कथन के उत्तर में सुबुद्धि ने कहा-'इसमें क्या है ? इष्ट से अनिष्ट हो जाना और अनिष्ट से इष्ट हो जाना तो वस्तुप्रो का स्वभाव ही है।' राजा ने कहा- 'प्रधान, तुम तो नास्तिक जान पड़ते हो । क्या यह भी कभी सम्भव है कि अच्छी वस्तु बुरी और बुरी वस्तु अच्छी बन जाए !'
राजा अपने दूसरे कर्मचारियो से इस सम्बन्ध मे बात करता तो वे सब राजा की ही बात का समर्थन करते थे। मगर सुबुद्धि तो यही कहता कि तुम लोग चाहो सो कहो । मेरे गुरु ने तो मुझे यही सिखलाया है और मैं यही मानता हूं कि इष्ट का अनिष्ट और अनिष्ट का इष्ट हो जाना ही पुद्गल का स्वभाव है । पुद्गल का स्वभाव नष्ट हो जाना है, अतएव वस्तु का इष्ट-अनिष्ट हो जाना स्वाभाविक है।
राजा ने प्रधान को बहुत समझाने की कोशिश की पर प्रधान ने अपनी बात नहीं बदली । प्रधान को अपनी बात पर पूरा भरोसा था । उसने राजा से कहा- जिस बात को मैं सत्य मानता हू, उस सत्य को मैं असत्य कैसे कह सकता हू ? राजा ने समझ लिया कि प्रधान इस समय हठ पकड़ कर बैठा है । अब इस बात को जाने