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बासठ से छांसठवां बोल-३०५
प्रश्न - भगवन् । जीभ का निग्रह करने से जीव को क्या लाभ होता है ?
उत्तर-जीभ का निग्रह करने से स्वादिष्ट-अस्वादिष्ट रसों में जीव राग-द्वेष रहित हो जाता है और इससे रागद्वेष के कारण उत्पन्न होने वाले कर्मों का बध नही होता और पहले बंध हुए कर्मों का क्षय करता है ।
प्रश्न--भगवन् ! स्पर्शन इन्द्रिय के निग्रह से जीव को क्या लाभ होता है ?
उत्तर--स्पर्शन-इन्द्रिय के निग्रह से जीव सुन्दर-असुन्दर स्पर्शों मे राग-द्वेष से रहित हो जाता है और रागद्वेष के कारण उत्पन्न होने वाले कर्मों का बध नही करता और पहले बन्धे हुए कर्मों का क्षय करता है ।
व्याख्यान इन्द्रियो के निग्रह करने का अर्थ यह नही है कि उन्हे नष्ट कर दिया जाये । इन्द्रिय-निग्रह का अर्थ है इन्द्रियो पर काबू पाना-उन्हे अपने वश में रखना । स्वय इन्द्रियों के वश में न हो जाना इन्द्रिय-निग्रह है। जैसे घुड़सवार घोड़े को अपने काबू में रखता है, वह घोडे के वश मे नही हो जाता, उसी प्रकार इद्रियो को अपने वश में रखना ही इद्रियनिग्रह है । सवार घोडे को अपने काबू में नही रखेगा तो नतीजा यह होगा कि वह नीचे पड जाएगा। इसी प्रकार इद्रियो पर काबू न पाने का परिणाम हैमात्मा का पतन । इद्रियो का निग्रह करने से आत्मा का उद्धार होता है और निग्रह न करने से पतन अवश्यम्भावी है।