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एकसठवां बोल - २६६
शब्दार्थ
प्रश्न -- भगवन् ! चारित्रसम्पन्नता से जीवात्मा को क्या लाभ होता है ?
उत्तर - चारित्र सम्पन्नता से जीव शैलेशी (मेरु पर्वत की तरह निश्चल) भाव को प्राप्त करता है । शैलेशीभाव को प्राप्त अनगार बाकी बचे हुए चार कर्मों को खपाता है और फिर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त तथा परिनिर्वाण को प्राप्त करके समस्त दुःखों का अन्त करता है ।
व्याख्यान
पूर्ण चारित्रसम्पन्नता से जीव शैलेशी - श्रवस्था प्राप्त करता है । शैलेशी अवस्था अर्थात् कपन-रहित अवस्था प्राप्त करना । जैसे शैल अर्थात् पर्वत अकपन होता है, उसी प्रकार शैलेशी अवस्था को प्राप्त जीवात्मा भी निष्कप बन जाता है । शैल का अर्थ पर्वत और ईश का अर्थ प्रधान है । जैसे सुमेरु पर्वत श्रटल - डोल - प्रचल और अकप है, उसी प्रकार पूर्ण चारित्र सम्पन्नता से जीवात्मा मन, वचन तथा काय के योगो को रोककर सुमेरु के समान निश्चलता प्राप्त करता है | चारित्र सम्पन्नता से आत्मा लेश्यारहित अवस्था पाता है, ऐसा अर्थ भी घट सकता है, क्योकि लेश्या के होने पर ही कपन होता है । जीव जब लेश्याहीन हो जाता है तब वह अचल वन जाता है ।
चारित्र का अर्थ है - पूर्ण शील श्रथवा पूर्ण संवय की प्राप्ति | अहिंसा, सत्य आदि उत्कृष्ट संवर की प्राप्ति होना उत्कृष्ट चारित्र है । उत्कृष्ट चारित्र प्राप्त करके आत्मा