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२८४ - सम्यक्त्वपरात्रम ( ५ )
एक दिन राजशेखर पंडित मिट्टी के सकोरा में खराब अनाज साफ कर रहा था। राजा भोज ने घूमने जाते समय यह दृश्य देखा। यह देखकर राज समझ गया कि यह कोई विद्वान पुरुष ज न पडता है । उसकी विद्वत्ता की जाच करने के लिए उसे लक्ष्य करके राजा भोज ने स कृत में कहा -- जो लोग अपना पेट भी नहीं भर सकते, वे इस समार मे जीवित रहे तो क्या और जीवित न रहे तो क्या ?
राजा का यह कथन सुनकर राजशेखर के हृदय को बडा आघात लगा । उसने संस्कृत भ पा मे ही उत्तर दियाजो शक्तिशाली होकर दूसो की सहायता नही करते वे इस ससार मे रहे तो क्या और न रहे तो क्या ?
राजशेखर का करारा उत्तर सुनकर भोन को विश्वाम हो गया कि यह कोई विद्वान् पुरुष है । मगर इतना विद्वान् होने पर भी यह इतना गरीब क्यो है ? यह जानने के लिए भोज ने पूछा- किस कारण तुम्हारी ऐसी दगा हुई है ? राजशेखर ने कहा- तुम सरीखे उदार राजा सब जगह नही हैं । इसी कारण मेरी यह दशा हुई है । यह रहस्यपूर्ण उत्तर सुनकर राजा ने मन में विचार किया - अब मुझ इस विद्वान् की पूरी-पूरी सहायता करनी ही चाहिए ।
इस प्रकार विचार कर राजा हाथी से उतर पडा और हाथी राजशेखर को दे दिया। राजशेखर सोचने लगामुझे तो पेटभर खाना नही मिलता । अत्र में इस हाथी को अपने घर कैसे बांधू । इम प्रकार विचार कर राजशेखर ने हाथी के मुख के पास अपने कान लगा दिये और अपना सिर इस तरह हिलाने लगा, मानो हाथी पंडित के कान मे कुछ कह रहा हो ! यह विचित्र दृश्य देखकर राजा ने पूछा