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२५०-सम्यक्त्वपराक्रम (५) पूर्ति के लिए नही।
वचनगुप्ति का जितना अधिक पालन हो सके उतना ही श्रेयस्कर है । आज घर-घर जो क्लेश-कलह होता देखा जाता है, उसका प्रधान कारण वचन पर अकुश न होना भी है । वचन पर अकुश रखा जाये तो बहुतसा कलह शात हो सकता है । क्षत्रियत्व न रहने के कारण लोग तलवार चलाना तो भूल गये है, उसके बदले वचन वाण चलाना सीख गये हैं । मगर वचन-वाण तलवार से भी ज्यादा तीखे होते हैं, अतएव अधिक आघात पहुचाते हैं । कोणिक की रानी पद्मा ने कठोर वचनो द्वारा कोणिक को इतना उत्तेजित कर दिया था कि महायुद्ध मच गया । इस महायुद्ध मे एक करोड, अस्सी लाख मनुष्य स्वाहा हो गए। लोग तलवार को तो सभाल रखते हैं परन्तु जीभ को वश में नहीं रखते इसो कारण क्लेश-कलह होता है । जीभ कैसी है भोर किस लिए तथा किस प्रकार उसकी सभाल रखनी चाहिए, इस सम्बन्ध मे एक लोककवि ने कहा है। -
जीभ जोग अरु भोग जीभ ही रोग बढावे, जिभ्या से यश होय, जीभ से प्रादर पावे । जीभ नरक ले जाय, जीभ वैकुण्ठ पठावे, जीभ करे फजीत जीभ से जता खावे । अदल तराजू जीभ है, गुण-अवगुण दोउ तोलिये, वैताल' कहे विक्रम सुनो जीभ सम्हाल कर बोलिये ।। __इस प्रकार जीभ की नोंक पर गुण और अवगुण दोनो वसे हैं । अगर हम गुण ग्रहण करना चाहते हैं तो हमे जिह्वा से सत्य, प्रिय और पथ्य बोलना चाहिए। हमे एक भी ऐमा