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पचपनवां बोल
कायगुप्ति
शास्त्र का कथन है कि पांच समिति और तीन गुप्ति मे समस्त द्वादशाग वाणी का समावेश हो जाता है। इसी कारण उन्हे प्रवचनमाता भी कहते हैं। प्रवचनमाता का पूर्णरूप से गुणानुवाद करना सरल काम नही है । फिर भी प्रत्येक व्यक्ति अपनी माता का गुणानुवाद तथा भक्तिप्रदर्शन अपनी शक्ति के अनुसार करता ही है। इसी प्रकार मैं प्रव. चनमाता का गुणानुवाद करने के लिए उद्यत हुआ हूं ।
गौतम स्वामी ने मनगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति का पालन करने से जीव को क्या लाभ होता है, यह प्रश्न किया है । इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान् महावीर ने मन-गुप्ति और वचनगुप्ति से होने वाले लाभ के सम्बन्ध में जो कुछ कहा है, उसका विवेचन पहले किया गया है। अब यह विचार करना है कि कायगुप्ति से जीव को क्या लाभ होता है?
मूलपाठ प्रश्न-कायगुत्तयाए ण भंते ! जीवे कि जणयह ?