________________
अट्ठावनवां बोल-२७३
भिन्न-भिन्न भी हैं । अगर दूध और घी एक ही होता तो दूध मे से घो निकलता ही कैसे ? और निकालने की आवश्यकता भी क्या थी ? और यदि दोनो भिन्न ही हो तो पानी की तरह दूध में से घी कैमे निकलना ? इसी भाति आत्मा और काया एक भी है और भिन्न भिन्न भी हैं । काया के नाम पर यह प्रश्न प्रात्मा के सम्बन्ध में ही किया गया है, अतः काया के सम्बन्ध मे किया हुआ यह जुदा प्रश्न अनुचित नही है ।
कुछ लोग आत्मा को काया से सर्वथा भिन्न मानते हैं और कुछ लोग दोनो को सर्वथा एक ही मानते हैं । परन्तु यह दोनो एकान्तवाद सच्चे नही हैं । क्योकि आत्मा और शरीर किसी दृष्टि से एक भी हैं, किसी दृष्टि से अलगअलग भी है । यद्यपि आत्मा और शरीर कथचित एक भी हैं परन्तु दोनो मे अलग हो जाने की शक्ति है और इस कारण वे भिन्न-भिन्न भी हैं ।
प्रश्न किया जा सकता है कि जब आत्मा और शरीर किसी अपेक्षा से एक हैं तो फिर इन दोनो का सयोग कब से हुआ है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि इन दोनो का सयोग अनादि से है । कहा जा सकता है कि यदि दोनो का सयोग अनादिकाल से है तो अनादि सयोग छूट कैसे सकता है ? इस शका का समाधान यह है कि दोनों का सयोग अनादि होने पर भी वह सयोग टूट सकता है । धातु और पाषाण का सयोग तथा घी और दूध का सयोग कब से है? पहले कौन था और पीछे कौन हुआ ? इस प्रश्न का यही उत्तर दिया जा सकता है कि दोनो का सयोग एक ही साथ हुप्रा है, फिर भी उसे भिन्न किया जा सकता है। इसी प्रकार