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२५८-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
और मानना चाहिए कि हमारे प्रभु ने जब सदैव के लिए कायोत्सर्ग कर दिया है तो मैं थोड़ी देर के लिए भी कायो. त्सर्ग मे स्थिर क्यों न रहं ।
इस प्रकार कायोत्सर्ग करना भी कायगुप्ति है । कायोत्सर्ग मे काया की ममता तज देनी चाहिए । काया पर से थोडा-थोडा ममत्व भी उतारने का अभ्यास किया जायेगा तो भी कल्याण होगा। जब एक बार किया हुअा नमस्कार भी कल्याणकारी होता है तो हमेशा किया जाने वाला ऐसा कायोत्सर्ग लाभकारी क्यो नही होगा ? मगर कायोत्सर्ग लाभकारी तभी हो सकता है जब काया की ममता छोडकर कायोत्सर्ग किया जाये । जो व्यक्ति लक्ष्य चूक कर तीर चलाता है, उसका तीर वृथा जाता है । लक्ष्य साधकर चलाया गया तीर ही इष्ट कार्य-साधक होता है । अतएव कायोत्सर्ग करने का लक्ष्य सामने रखकर कायोत्सर्ग किया जायेगा तो अवश्य कल्याण होगा ।