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छप्पनवां बोलू
मनः समाधि
पिछले वोलों में मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति के विषय में कहा जा चुका है । अब गुप्ति की रक्षा करने के लिए मन को सत्यमार्ग (समाधि) में स्थापित करने की आवश्यकता है । अतएव मन को समाधि में स्थापित करने से जीव को क्या लाभ होता है, इस विषय में गौतम स्वामी भगवान् महावीर से प्रश्न करते हैं.
मूलपाठ
प्रश्न- मणसमाहारणयाए ण भते ! जीवे कि जणयइ ? उत्तर - मणसमाहारणयाए एगां जणयइ, एगगं जणइत्ता नाणपज्जवे जणयइ, नाणपज्जवे जणइत्ता सम्मत्तं विसोहेइ, मिच्छत्तं य निज्जरेइ ।। ५६ ।
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शब्दार्थ
प्रश्न - भते ! मन को समाधि में स्थापित करने से जीव को क्या लाभ होता है ?