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सत्तावनवां बोल
वचन-समाधि
मन को सत्यमार्ग में स्थापित करने से होने वाले लाभ का वर्णन किया जा चुका है। अब गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं कि वचन को सत्यमार्ग मे स्थापित करने से जीव को क्या लाभ होता है ?
मूलपाठ प्रश्न-वयसमाहारणयाए ण भंते ! जीवे कि जणयइ?
उत्तर- वयसमाहारणयाए वयसाहारणदसणपज्जवे विसोहेइ, वयसाहारणदसणपज्जवे विसोहित्ता सुलहवोहियत्रं निव्वत्तेइ, दुल्लहवोहियत्तं निज्जरेइ ॥५७॥
शब्दार्थ प्रश्न - भगवन् ! वचन के समाधारण से अर्थात् वचन को सत्यमार्ग में स्थापित करने से जीवात्मा को क्या लाभ होता है ?
उत्तर- वचन को सत्यमार्ग में स्थापित करने से जीवात्मा दर्शनपर्याय-सम्यक्त्वपर्याय निर्मल बनाता है और