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छप्पनवां बोल - २६१
माता-पिता अपनी सतान को गहने पहनाते हैं तो इस बात की सावधानी भी रखते हैं कि कोई गहने न ले जाए अथवा गहनो के लोभ से कोई सन्तान को खराब रास्ते पर न ले जाए या कोई उसे मार न ड ले । इसी भाति यह सावधानी भी रखनी चाहिए कि मन खराब सगति में न पड़ जाये । मन जब खराब कामो मे प्रवृत्त होने लगे तब उसे वहा से रोककर सत्कर्मों मे प्रवृत्त करना ही मन के निरोध का प्रारम्भ है । इस प्रकार निरोध करने से ही मन एकाग्र होगा और जब मन एकाग्र होगा तभी जीवन मे ज्ञानशक्ति प्रकट होगी । ज्ञान बाहर से नही आता । वह तो आत्मा में ही मौजूद है, मगर मन एकाग्र न होने से ज्ञान पर भावरण श्रा जाता है । अगर मन को एकाग्र किया जाये तो ज्ञान का आवरण हट जाए और ज्ञानशक्ति प्रकट हो जाए । जब ज्ञानशक्ति प्रकट हो जाती है तब मिथ्यात्व का नाश हो जाता है और सम्यक्त्व को विशुद्धि होती है ।
वस्तु को विपरीत रूप मे जानना, समझना या मानना मिथ्यात्व है । जीव को अजीव, अजीव को जीव, धर्म को अधर्म और अधर्म को धर्म मानना मिथ्यात्व है । मिथ्यात्व अज्ञान के कारण उत्पन्न होता है । अज्ञान के कारण ही भ्रम होता है और भ्रम का निवारण ज्ञान द्वारा ही हो सकता है। ज्ञान मन की एकाग्रता से उत्पन्न होता है और मन की एकाग्रता मन की समाधि से उत्पन्न होती है । अतएव मन को खराब कामो मे जाने से रोकने के लिए सदा सावधान रहना चाहिए। मन की समाधि मोक्ष प्राप्ति का कारण है । मनोयोग मोक्षप्राप्ति के लिए सहजयोग है और सहजयोग से
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