________________
१६०-सम्यक्त्वपराक्रम (४) सयम-पालन में सिंहवृत्ति धारण करने का अभ्यास करूगा और प्राणपन से सयम का पालन करूगा ।
खधकजी ने उत्साह और वैराग्य के साथ सयम स्वीकार किया । पिता ने विचार किया--'खधक ने आज तक किसी प्रकार का कष्ट सहन नही किया है । अतएव मुझे ऐसी व्यवस्था कर देनी चाहिए कि उसे किसी प्रकार का उपद्रव न सताये।' इस प्रकार विचार करके पिता ने पुत्रमोह से प्ररित होकर पाच सौ सैनिको की व्यवस्था कर दी। ऐसा प्रबन्ध किया गया कि खघकजी को इस बात का पता न लगे मगर उनकी बराबर रक्षा होती रहे । सैनिक गुप्न रूप मे खधक मुनि के साथ रहने लगे। खधक मुनि को इन रक्षक सैनिकों का पता नही था, वह तो यही मानते थे कि मेरी रक्षा करने वाला मेरा आत्मा ही है, दूसरा कोई नहीं । इस प्रकार खधक मुनि तपश्चरण करके आत्मकल्याण करने लगे और प्रात्मा को भावित करते हुए ग्रामानुग्राम विचरने लगे।
विहार करते-करते वे अपनी ससारावस्था की बहन के राज्य मे पधारे । उनके पीछे गुप्त रूप से चले आने वाले सैनिक विचारने लगे--अव खघकजी अपनी बहन के राज्य मे या पहचे है। अब किसी प्रकार के उपद्रव की सभावना नही है । इस प्रकार निश्चिन्त होकर सैनिक अपनीअपनी इच्छा के अनुसार दूसरे कार्यों में लग गए । इधर खधक मुनि श्रात्मा और शरीर का भेदविज्ञान हो जाने के कारण तपश्चरण द्वारा शरीर को सुखा कर आत्मा को बलवान बनाने में लगे हैं।
एक बार खधक मुनि भिक्षाचरी करने के लिए राजमहल के पास से निकले । उस समय राजा और रानी राज