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छयालीसवां बोल-१६१
महल की अटारी पर बैठकर नगर निरीक्षण करने के साथ ही साथ मनोविनोद कर रहे थे । रानी की दृष्टि अकस्मात मुनि के ऊपर पड गई । मुनि को देखते ही रानी विचारने लगी-मेरा भाई भी इन्ही मुनि की तरह भ्रमण करता होगा । इस तरह विचारमग्न होने के कारण रानी क्षण भय के लिए मनोविनोद और वाणोविलास को भूल गई । राजा ने देखा साधु को देखकर रानी मुझे भूल गई और दूसरे ही विचारो मे डब गई है । यह साधु शरीर से तो कृश है पर ललाट इसका तेजस्वी है। इस मुडित साधु के प्रति रानी का प्रेमभाव तो नही होगा ? इस विषय मे दूसरो की सलाह लेना भी अनुचित है । अतएव किसी और से पूछने की अपेक्षा इस साध को समाप्त कर देना ही ठीक है । इस प्रकार विचार कर राजा ने नौकर (चाण्डाल) को बुलाकर आज्ञा दी-उस साधु को वधभूमि पर ले जाओ और मार कर उसकी खाल उतार लाओ।
राजा की यह कठोर आज्ञा सुनकर चाण्डाल कांप उठा। वह मन ही मन विचार करने लगा आज मुझे कितना जघन्य काम सौंपा गया है। मैं चाकर ह अतएव यह काम किये बिना छुटकारा नही। अगर मैं राजा की आज्ञा का उल्लंधन करता है तो मैं उनका कोप-भाजन बनू गा और शायद मुझे प्राणदण्ड दिया जायेगा। इस प्रकार विचार कर वह खधक मुनि के पास आया और उन्हे पकड़ने लगा । मुनि ने पूछा--मुझे किस कारण पकडा जा रहा है ? चांडाल ने कहा-'राजा ने पकडने को आज्ञा दी है । अतएव चुपचाप मेरे पीछे चले आप्रो ।' मुनि ने पूछा-चलना कहा है ?
चाडाल--श्मशानभूमि मे ।