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२३८-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
उत्तर मगगुत्ताए जीवे एगग्गंजणयइ एगग्गचित्ते __णं जीवे मणगुत्ते सजमाराहए सबइ ॥ ३३ ॥
शब्दार्थ प्रश्न - भते । मनोगुप्ति से जीवात्मा को क्या लाभ होता है ?
उत्तर- मनोगुप्ति ( मन के सयम ) से जीवात्मा में एकाग्रता उत्पन्न होती है और एकाग्र-चित्त वाला जीवात्मा सयम का आराधक बनता है ।
व्याख्यान यह प्रश्न पहले योगसत्य के सम्बन्ध मे प्रश्नोत्तर करने मे आया है । योगसत्य तभी रखा जा सकता है जब मन, वचन और कार्य की गुप्ति अर्थात् रक्षा की जाती है। इसलिए योगसत्य के अनन्तर तीन गुप्तियो के विषय में प्रश्न किया गया है ।
मानव-शरीर में मन की प्रधानता है । अगर मन की गुप्ति अर्थात् रक्षा की जाये तो वचनगुप्ति तथा कायगुप्ति भी सरलतापूर्वक रखी जा सकती है। मन, मानवशरीर का प्रधान अग होने के कारण उसकी रक्षा करना आवश्यक है । मन बहुत चचल होता है, अतएव मन की चचलता को रोकने के लिए शास्त्रो में तथा ग्रन्थो मे खूब ऊहापोह किया गया है। मन की चंचलता के विषय मे गीता मे भी कहा है। -
चञ्चल हि मनः कृष्ण ! प्रमादि बलवद् दृढम् । तस्याह निग्रह मन्ये, वायौरिव सुदुष्करम् ॥