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२३६ – सम्यक्त्वपराक्रम ( ५ )
कितने ही लोग कहा करते हैं हमारा मन सामायिक मे नही लगता । पर जब तक मन ग्रसत्य योग मे प्रवृत्त हो रहा है तब तक वह सामायिक में कैसे लगेगा ? सामायिक मे मन एकाग्र करना हो तो मन को सत्ययोग मे प्रवृत्त करना चाहिए । जब मन सत्ययोग मे लग जायेगा तो मन सामायिक में स्थिर हुए बिना नही रहेगा ।
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अगर तुम्हारे मन, वचन और काय का व्यापार सत्ययोग मे प्रवृत्त होगा तो तुम्हारे योग की अवश्य विशुद्धि होगी और जब योग की विशुद्धि होगी तब तुम्हे किसी प्रकार का सकट नही सहन करना पड़ेगा और न दूसरे के शरण में ही जाना पडेगा । जो लोग योग को सत्य मे प्रवृत्त करते हैं, उनका सकट टल जाता है ।