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बावनवां बोल-२३५
गया । यहा यह कथन किया गया है कि गाव भागता है, परन्तु गाव मे बसने वाले लोग भ गते है-गाव नही । फिर भी व्यवहार में यही कहा जाता है कि सारा गाव भाग गया । वस्तु में सत्-असत् का निर्णय न करके व्यवहार मे जैसा कहा जाता है, वैसा ही कपटरहित मन से कहना व्यवहार है ऐसे व्यवहार मे योग को प्रवृत्त करना व्यवहारयोग कहलाता है ।
वचनयोग और काययोग के भी इसी प्रकार जुदेजुदे भेद हैं । सत्य, असत्य, मिश्र और व्यवहार, इन चारो मे से जिस योग को जिसके साथ जोडा जायेगा वह योग वैसा ही कहलाएगा । भगवान् ने सत्य मे योग जोडने का फल यह बतलाया है कि योगसत्य से योग की विशुद्धि हाती है अर्थात् आत्मा फ्लेश कर्म के विपाक से रहित होता है ।
जैसे झाडू से घर का कचरा साफ किया जाता है, उसी प्रकार आत्मा मे मन, वचन तथा काय की असत्यप्रवृत्ति रूपी जो कचरा भरा हुआ है, उसे योगसत्य रूपी झाडू से साफ किया जाता है। किसी विशिष्ट व्यक्ति को घर आने का आमन्त्रण तभी दिया जाता है जब अपना घर पहले से ही साफ कर लिया हो । घर साफ-सुथरा न हो तो महान् पुरुष को घर पर आने का निमन्त्रण नही दिया जाता । इसी प्रकार अगर अपने आत्ममदिर मे परमात्मादेव को पधराना हो तो हमे आत्म-मदिर मे से असत्य योग की प्रवृत्ति रूपी कचरे को बाहर निकाल देना चाहिए । ऐसा करना आवश्यक है ।