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पचासवां बोल-२११
विजय प्राप्त करने से प्रात्मशाति तो मिलेगी ही, विश्व में भी शाति स्थापित हो जाएगी। विश्व मे सुख-शाति स्थापित करने के लिए दया, क्षमा आदि अहिंसात्मक साधनो द्वारा कषायात्मा को जीतना ही एकमात्र अमोध मार्ग है । आज "शठ प्रति शाठयम" अर्थात् वैर का बदला वैर से लेने की नीति प्रयोग में लाई जा रही है। मगर इस प्रकार के वैरयुक्त व्यवहार से ससार में कदापि सुख-शाति की स्थापना नहीं हो सकी है और न हो सकती है । क्योकि शन्ति स्थापित करने का यह मार्ग ही नही है । शान्ति स्थापित करने का मच्चा और अमोघ मार्ग तो 'शठ प्रत्यपि सत्यम्" अर्थात् वैर का बदला भी क्षमा से देना है । विश्वशाति की स्थापना तो तभी हो सकती है जब थप्पड का बदला भी क्षमा से दिया जाये। शास्त्रकार तो बहत प्राचीन समय से ही पुकारपुकार कर यह बात कह रहे हैं, परन्तु अब गाधीजी जैसे राजनीतिज्ञ भी यही कहते हैं। दूसरो को शाति पहुंचाने से ही शाति प्राप्त हो सकती है। दूसरो को अशांत करके स्वयं शाति की अभिलाषा करने से शाति नही मिल सकती । प्रशाति बढाने से शाति नही वरन् अशाति ही फैलेगी।
सन् १९१४ मे अग्रेजो और जर्मनो के बीच महायुद्ध हुआ था । कहा जाता है कि इस युद्ध में अग्रेजो ने जर्मनो को पराजित किया था और शाति स्थापित की थी। परन्तु वह शाति राख ढकी अग्नि के समान किस प्रकार उत्पात मचाने वाली थी, यह आज प्रत्यक्ष देखा या सुना जा सकता है । इस घटना से इतना सार अवश्य निकलता है कि शस्त्रबल से किसी को थोडे समय के लिए भले ही पराजित कर दिया जाये परन्तु ऐसा करने से शाति स्थापित नही हो