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। । इक्यावनवां बोल-२२३
- उत्तर- करणसत्य (सत्य प्रवृत्ति करने) से सत्य क्रिया करने की शक्ति उत्पन्न होती है और सत्यप्रवृत्ति मे स्थित जीवात्मा जैसा कहता है वैसा ही करता है ।
व्याख्यान करण का सामान्य अर्थ है- साधन । कर्ता जिस साधन की सहायता से क्रिया करता है उस साधन को 'करण' कहते हैं । जैसे कुम्भार चाक की सहायता से घडा बनाता है, अतएव चाक करण है । इसी प्रकार इन्द्रिया भी केरण हैं । कर्ता इन इन्द्रियो से जैसा चाहे वैसा काम ले सकता है । आत्मा ( कर्ता) ससार की वृद्धि करने मे भी इन्द्रियो का उपयोग कर सकता है और ससार से मुक्त होने मे भी उपयोग कर सकता है ।।
आज लोग साधारण कलम के लिए भी परतन्त्र हो रहे है । प्राचं न समय मे बरु. की कलम बनाई जाती थी, मगर अब तो होल्डर और फाउन्टेनपेन का प्रचार बढ़ गया है । लोग समझते हैं कि सुभीते के साधन बढ़ जाने से हम सुखी हो गए हैं पर वास्तव में इन साधनो द्वारा सुख नही बढा, परतन्त्रता ही बढी है और खर्च भी बढ़ गया है । पहले बरू की कलम बनाने में कितना कम खर्च होता था? मैं जब ससारावस्था मे था तो बाजार से कुछ बरू खरीद लाया था । मैं जब तक ससारावस्था मे रहा तब तक वे बरू काम मे आते रहे और जो बचे वे मेरे दीक्षा के बाद दूसरो के काम पाये होगे । इस प्रकार पहले थोड़े से खर्च मे काम चल सकता था और परतन्त्रता भी नही भोगनी पड़ती थी।