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बावनवां बोल-२२६
चाहिये । अब प्रश्न यह है कि सत्य किसे कहना चाहिए ? इस प्रश्न का उत्तर देना कुछ कठिन है । सत्य की पूर्ण व्याख्या तो वही महापुरुष कर सकते हैं ।जन्होन अपने जीवन मे सत्य को तानेबाने की तरह बुन लिया हो । जिन महापुरुषो ने सत्य को सागोपाग सम्पूर्ण रूप से जीवन में उतार लिया है, उनमे और ईश्वर मे कोई अन्तर नही रहता। क्योकि शास्त्र में कहा है कि सत्य ही भगवान् है अर्थात् भगवत्प्राप्ति का सच्चा मार्ग सत्य ही है ।
सत्य की पूर्ण व्याख्या करना यद्यपि अपने लिए कठिन अवश्य है, फिर भी प्रत्येक मनुष्य अपने पुरुषार्थ द्वारा सर्वथा न सही, आशिक रूप मे भो अपने ध्येय तक पहुच ही सकता है । इस कथन के अनुसार अपनी शक्ति के अनुसार यहा यह दिग्दर्शन कराने का प्रयत्ल किया जायेगा कि सत्य क्या है ?
साधारणतया सभी मनुष्य सत्य का स्वरूप समझने की अभिलाषा रखते हैं, परन्तु वही लोग सत्य को ठीक तरह समझ सकते हैं, जिन्हे सत्य हृदय से प्रिय है . सत्य 'का उपासक बनने की इच्छा रखने वाला सत्य के समक्ष तीन लोक को सम्पदा को हो नही वरन् अपने प्राण को भी तुच्छ समझता है । किन्तु जो लोग किसी सम्प्रदाय, धर्म या मत के पीछे मतवाले बन जाते हैं और स्वार्थवश होकर सत्यासत्य का विवेक भूल जाते हैं, वे सत्य का स्वरूप नही समझ सकते । वे सत्य को अपने जीवन मे उतार भी नही सकते । जीवन को नीतिमय प्रामाणिक, धार्मिक तथा उन्नत बनाने के लिए सर्वप्रथम सत्यमय बनाना आवश्यक