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२२८-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
व्याख्यान मन, वचन और काय का व्यापार योग कहलाता है। __ मन, वचन और काय का व्यापार पन्द्रह प्रकार का है ।
मूल मे योग के तीन भेद हैं मनोयोग, वचनयोग और काययोग । इनके पन्द्रह भेद हैं मनयोग के चार भेद, वचनयोग के चार भेद और काययोग के सात भेद हैं । वचन और काय के साथ मन रहता है किन्तु कभी मन सत्य मे प्रवृत्त होता है कभी असत्य मे प्रवृत्त होता है । असत्य मे मन प्रवृत्त तो होता है मगर योग को सत्य मन मे ही प्रवृत्त करना चाहिये । सत्य मन मे योग को प्रवृत करने से जीवा मा को क्या लाभ होता है, यह बतलाने के लिये ही गौतभ स्वामो ने भगवान् से प्रश्न किया है। भगवान् ने उत्तर दिया है कि सत्य-योग से योग को विशुद्धि होती है । मन मे सत्य योग को प्रवृत्त करना ही योगसत्य है और योगसत्य से योग की विशुद्धि होती है।
योग का अर्थ जोडना भी है। मन, वचन और काय को किसी के साथ जोडना भो योग कहलाता है। मन, वचन और काय को जिसके साथ जोडा जाता है उसी का योग कहते हैं । पानी मे कोई वस्तु डाली जाये तो वह उस वस्तु का रग अपना लेता है, इसी प्रकार अगर योग को सत्य में प्रवृत्त किया जाये तो वह सत्य-योग कहलायेगा और यदि असत्य मे प्रवृत्त किया जाये तो असत्ययोग कहा जायेगा । इसी तरह अगर सत्य असत्य दोनो मे योग मिश्रित किया जाये तो मिश्रयोग कहलाएगा ।
तात्पर्य यह है कि योग को सत्य मे प्रवृत्त करना