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२२६-सम्यक्त्वपराक्रम (५) ही आचरण करके दिखाना चाहिए कहना कुछ और करना कुछ, इस पद्धति को अगीकार करने से तुम्हारा आत्मा सतुष्ट नहीं होता और परमात्मा भी प्रसन्न नही होता । कथनी और करनी मे भिन्नता रखने से जीवन का व्यवहार ठीक तरह नहीं चल सकता । किसी ने कहा है- यह करना चाहिए- यह नही करना चाहिए' ऐमा दूसरो से तो कहा जाता है, परन्तु अपने कहने के अनुसार तू आप ही नहीं करता, यह कहा तक उचित कहा जा सकता है । कहना कुछ और करना कुछ, यह भेदनीति सर्वथा अनुचित है ।
जव गृहस्थो के लिए भी यह भेदनीति अनुचित गिनी जाती है तो साधुओ के लिए वह अनुचित और वर्ण्य हो, यह स्वाभाविक ही है । ऐसा होने पर भी कितनेक साघु भी बोलने में और करने मे भिन्नता रखते हैं । परन्तु इस प्रकार के अनुचित व्यवहार से परमात्मा प्रसन्न नही हो सकता । परमा-मा को प्रसन्न करने के लिए उच्चार को आचार मे लाने की अत्यन्त आवश्यकता रहती है।