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पचासवां बोल-२१३
कषायजित कहलाता है । गौतम स्वामी के व्यवहार से ही केशी स्वामी ने उन्हे जितात्मा तथा कषायविजयी कहा था। गौतम स्वामी का निश्चय व्यवहार में न उतरा होता तो केशी स्वामी उन्हें कषाय विजयी के रूप मे किस प्रकार पहचान सकते थे ? गौतम स्वामी के व्यवहार ने ही प्रकट कर दिया कि उनमे क्रोध, मान, माया, लोभ नही है । जो निश्चय मे होता है वही व्यवहार में आता है । व्यवहार से हो निश्चय का पता लगता है । जब कोई वृक्ष ऊपर से हरा-भरा दिखाई देता है तो उसकी जड भी हरी-भरी होने का अनुमान किया जा सकता है । इसी प्रकार व्यव. हार से निश्चय का अनुमान किया जा सकता है । इसके अतिरिक्त निश्चय के साथ व्यवहार को भी आवश्यकता रहती है । केवल निश्चय या केवल व्यवहार को पकड कर बैठ जाने से काम नहीं चल सकता। निश्चय और व्यवहार दोनो से ही इष्ट कार्य सिद्ध होता है। वर्षा हो मगर बीज या अकुर न होगा तो क्या उगेगा ? इसी प्रकार बीज या अंकुर हो मगर वर्षा न हो तो भी अकुर कैसे बढगा? वर्षा हो और बीज भी हो, तभी अकुर उग सकता है । इसी तरह निश्चय और व्यवहार दोनो से ही काम चल सकता है । किसी एक से नहीं ।
संसार मे अनेक मत मतान्तर हैं। इन मत मतान्तरो की विपुलता के कारण लोगों को बुद्धि चक्कर में पड़ गई है । पर हमे तो वही मानना चाहिए जो केशी स्वामी और गौतम स्वामी ने कहा है । हमे वही बात मान्य होनी चाहिए जो वीतराग प्रभु सर्वज्ञ तीर्थंकर ने बतलाई है । अगर कोई वात हमारी समझ मे न आवे तो भी अपने हृदय मे ऐसा