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२२०-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
स्वभावत. मिलता है । परमात्मा कर्म का फल देने या जन्ममरण कराने के झगड़े मे नही पड़ता । ऐसा होने पर भी कुछ लोग परमात्मा या काल आदि पर सारी जिम्मेदारी डाल कर कहते हैं- हम क्या करे ? काल ही ऐसा आ गया है । परमात्मा ने ही यह सब किया है। परन्तु इस प्रकार परमात्मा या काल आदि पर वोझा डालना अज्ञान है ।
शास्त्र कहता है कि तुम्ही कर्म के कर्ता और तुम्ही कर्म के भोक्ता हो । तुम स्वयं अपना सुवार या बिगाड कर सकते हो। स्वभाव, काल आदि की सहायता तुम्हारे कार्य में अपेक्षित अवश्य है परन्तु कर्म के कर्ता तो तुम स्वय हो । तुम पुरुषार्थ करोगे तो तुम्हारे कार्य मे काल आदि की सहायता भी तुम्हे मिलेगी। कहावत है- “हिम्मते मरदां मददे खुदा ।" इस कहावत का आशय यह है कि तुम हिम्मत रखोगे तो दूसरो की सहायता भी तुम्हे मिल जायेगी। हा, तुम पुरुषार्थ या प्रयत्न नही करोगे तो दूसरो की सहायता से वंचित रहोगे । अतएव अपना उत्तरदायित्व दूसरों पर मत डालो । अपना काम आप ही करना होगा ।
पुत्रो का युक्तिसगत कथन सुन कर भृगु पुरोहित समझ गया । भृगु पुरोहित ने तथा उसकी पत्नी ने देवभद्र और यशोभद्र को सयम ग्रहण करने की सहर्ष अनुमति दी । इतना ही नहीं, किन्तु स्वय भी सयम ग्रहण करके आत्मकल्याण किया । शास्त्रकारो ने यह घटना शास्त्र में सुरक्षित रखी। इस घटना से सार ग्रहण करके तुम भी आत्मसुधार करके प्रात्मकल्याण करो । . कहने का तात्पर्य यह है कि आस्तिक ही अर्हत-प्ररूपित