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सैंतालीसवां बोल
स्वामी लाभता अर्थात क्षमा धारण में विचार किन
अलोभवृत्ति पिछले बोल में क्षमा के विषय में विचार किया गया है। निर्लोभ व्यक्ति ही क्षमा धारण कर सकता है । अतएव अब निर्लोभता अर्थात् मुत्ति । मुक्ति ) के विषय मे गौतम स्व मी भगवान महावीर से प्रश्न करते है.
मलपाठ प्रश्न-मुत्तीए णं भते ! जीवे कि जणयइ ?
उत्तर--मुत्तीए ण अकिंचणं जणयइ । अकिंचणे य जीवे प्रत्यलोलाणं अप्पत्थणिज्जो हवइ ॥४७॥
शब्दार्थ
प्रश्न - भगवन् । मुक्ति अर्थात् निर्लोभता से जीव को क्या लाभ होता है ?
उत्तर-निर्लोभता से जीव अकिंचन-अपरिग्रह बनता है और घनलोलुप पुरुषो का अप्रार्थनीय बनता है ।
व्याख्यान गौतम स्वामी ने यह प्रश्न पूछ कर हम लोगो पर