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१६६-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
राध न होने पर भी उसने मनि के शरीर की चमडी उघड । लेने की आज्ञा दे दी। परन्तु मुनि की अनुपम क्षमा का वृत्तान्त सुनकर उस कठोरहृदय राजा को हृदय भी परिवर्तित हो गया । इस प्रकार खधक मुनि ने क्षमा का आदर्श उपस्थित करके स्व-पर कल्याण साधन किया। इस प्रकार की क्षमा धारण करने वाले ही वास्तव मे महान् हैं। क्षमा इस लोक का भी बल है और परलोक का भी बल है। ससार में उन्ही पुरुषो का जीवन धन्य बन जाता है, जो स्वय क्षमाशील बनकर दूसरो को भी क्षमाशील बनाते हैं।
तुम क्षमाशील बनकर आत्मा का कल्याण साधों । ___ इसी मे तुम्हारा कल्याण है।