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पचासवां बोल
भावसत्य
क्षमा, निरभिमानता, ऋजूता, विनयशीलता आदि गुणों के द्वारा आत्मा सरल और शान्त बनता है, आत्मा को कर्म-मैल से शुद्ध करने के लिए ऊपर के गुण धारण करना आवश्यक है । क्षमा आदि गुण धारण करने से किस प्रकार प्रात्मशुद्धि होती है, यह बात पहले विचारी जा चुकी है । अव गौतम स्वामी भगवान् महावीर से यह प्रश्न करते हैं कि अन्तःकरण की शुद्धि किस प्रकार होती है और उससे जीवात्मा को क्या लाभ होता है ?
मूलपाठ प्रश्न - भावसच्चेणं भते ! जीवे कि जण-इ?
उत्तर--भावसच्चेण भावविसोहि जणय इ, भावविसोहीए वट्टमाणे जीवे अरिहतपन्नत्तस्स धम्मस्स प्राराहणयाए अल्भुट्ठइ, अरिहतपन्नत्तस्स धम्मस्स पाराहणयाए प्रभुद्वित्ता परलोगधम्मस्स पाराहए भवइ ॥५०॥