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२०२-सम्यक्त्वपराक्रम (५)
दूसरा घडा ऐसा है कि उसमे विष भरा है और उसका ढक्कन भी विषमय है । तीसरा घडा ऐसा होता है कि उसमे अमृत भरा है किन्तु उसका ढक्कन विषमय है। चौथा घडा ऐसा है कि उसमे अमृत भरा है और ढक्कन भी उसका अमृतमय है । इस उदाहरण के अनुसार सत्य के भी चार प्रकार है।
भावसत्य के बिना आत्मा अहंत्-प्ररूपित धर्म की आराधना नही कर सकता । श्री उपनिषद् मे भी कहा है कि विद्यापूर्वक को जाने वाली उपासना ही सच्ची उपासना है । अज्ञानपूर्वक की जाने वाली उपासना सच्ची उपासना नही है । उपनिषत्कार जिसे विद्या कहते हैं, उसे हम लोग सम्यग्ज्ञान और दर्शन कहते है । उपनिषत्कार के कथनानु. सार जब तक विद्यापूर्वक उपासना नहीं की जाती, तब तक मोक्ष प्राप्त नही हो सकता । जैन शास्त्र मे भी कहा है:
नाणं च सणं चेव चरित्तं च तवो तहा। एस मग्गो ति पण्णत्तो जिणेहि वादंसिहि ।।
- उत्तराध्ययन, अ २८, गा. २ अर्थात्- जिनेश्वर भगवान् ने सम्यग्ज्ञान, दर्शन, चारित्र तथा तप को ही मोक्ष का मार्ग बतलाया है । तात्पर्य यह है कि यह चारो ही मोक्ष के मार्ग हैं ।
मोक्षमार्ग का क्रम बतलाते हुए कहा गया है कि जिन्हे सम्यग्ज्ञान प्राप्त होता है उन्हे ही सम्यग्दर्शन होता है और जिन्हे सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है उन्हे ही सम्यक्चारित्र की प्राप्ति होती है । अज्ञानी को सम्यग्दर्शन प्राप्त