________________
पचासर्वा बोल - २०७
1
करना स्वीकार किया परन्तु राम के सिवाय अन्य पुरुष को पति के रूप मे स्वीकार नही किया । अगर सीताजी का चित्त शुद्ध न होता तो वह इस प्रकार कष्ट सहन करने के लिये तैयार न होती । इस प्रकार चित्तशुद्धि, भावशुद्धि या आत्मशुद्धि को सभा ने महत्व दिया है। आत्मशुद्धि का महत्व कितना अधिक है, यह बात केशी-गोतम के सवाद में स्पष्ट रूप से बतलाई गई है । केशी कुमार स्वामी आत्मा की स्थिति बतलाते हुए गौतम स्वामी से पूछते हैं -
श्रगाण सहस्साण मज्झे चिट्ठसि गोपमा । ते य ते श्रहिगच्छति कह ते निज्जिया तुमे ॥
उत्तरा० २३-३५ अर्थात् हे गौतम । हजारो वैरियो के बीच मे तुम निवास कर रहे हो, वे तुम्हारे सामने जूझ रहे हैं, तुम उन सब को किस प्रकार जीत सकते हो
?
केशी स्वामी के इस प्रश्न के उत्तर मे गौतम स्वामी ने बतलाया
रागे जिए जिया पच, पंच जिए जिया दस | दसहा उ जिणित्ता ण, सव्वसत्त जिणामि ह ॥
-
-
अर्थात् - मैं सिर्फ एक ( आत्मा ) को जीतने का सतत प्रयत्न करता हूं, क्योकि उस एक को जीतने से पांच और पाच को जीतने से दस और दस को जीतने से समस्त शत्रुओ पर विजय प्राप्त हो जाती है ।
गौतम स्वामी का उत्तर सुन कर केशी स्वामी ने तुम शत्रु किसे कहते हो । पाच को जीत लेने से दस तथा दस को जीत लेने से समस्त शत्रु जीत लिये जाते हैं,
फिर प्रश्न किया- हे गौतम । और एक को जीतने से पाच