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उनचासवां बोल-१६५
नम्रता होती है वही विनयशील व्यक्ति अन्य सद्गुण प्राप्त कर सकता है। कहावत है - जो नमना है वही परमात्मा को गमता (सुहाता) है । मिष्ट फल भो उसी वृक्ष मे आते हैं जिसमे नम्रता होतो है । जिस वृक्ष में नम्रता नहीं होती, उसमे मिष्ट और सुन्दर फल भी नहीं लगते । आम्रवृक्ष आम लगने पर नीचे झुक जाता है और इसी कारण आम मे मिठास होती है। परन्तु एरड का पेड अकड़ा रहता है और इसो से उसके फल भो वैसे ही आते हैं । तुम्हे भी नमनभाव पसन्द है। अनम्रता तुम्हे भी पसन्द नही । आम' तुम बड़ी रुचि के साय खा जाते हो परन्तु एरड का फल खाने के लिए दिया जाये तो उसे खाना पसन्द करोगे ? जहा कोमलता होती है वही नमनभाव होता है और जहा नमनभाव होता है वहा विनय होता है । विनय भाव सभी गुणो को अपनी ओर खीच लाता है। विनयभाव मे सद्गुणो को अपनी ओर खीच लाने की शक्ति रही हुई है ।
जिस व्यक्ति मे विनय-भाव है, उसके विषय मे भगवान् कहते हैं कि विनयशील व्यक्ति मे आठ प्रकार के मदो मे से एक भी मद नही रह पाता।
मद के आठ स्थान हैं -(१) जातिमद (२) कुलमद (३) बलमद (४) रूपमद (५) तपमद (६) ज्ञानमद (७) लाभमद (८) ऐश्वर्यमद । इन आठ प्रकार के मदो का त्याग विनयशील व्यक्ति ही कर सकता है, क्योकि जीवन मे नम्रता आए बिना मदो का त्याग करना शक्य नही है।
प्रायः देखा जाता है कि लोग मामूली बात में भी अभिमान करने लगते हैं । नये बूट पहन कर लोग ऐसा