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१८६-सम्यक्त्वपराक्रम (४) लोग मेरे भाई को वजीर बनाने के लिए कहते थे । उसे वजीर बना भी दिया गया है। लेकिन वह वजीर बने रहने के लिए तैयार नहीं है । 'अब क्या करना चाहिए ? .
उन्होने कहा-हमारी ख्वाहिश तो यही थी कि मुसलमान सल्तनत का वजीर भी मुसलमान होना चाहिए । इसी - वजह से हमने आपके भाई का नाम पेश किया था । अब अगर वह वजीर होना या रहना नहीं चाहते तो जाने दीजिए।
आखिर बादशाह ने फिर हिन्दू प्रधान को प्रधान के पद पर नियुक्त किया । बादशाह ने हिन्दू प्रधान से ,कहाशेग्व हुसेन जो काम विगाड आया है उसे तुम सुधार आओ। वादशाह की आज्ञा गिरोधार्य करके हिन्दू प्रधान दलबल के साथ रोम गया । रोम के बादशाह को मालूम हुमा कि भारत का 'प्रधान आया है। रोम के बादशाह ने कहा - भारत के प्रधान का व्यक्तित्व ही क्या है ! एक प्रधान तो पहले आया था। अव यह दूसरा आया है। मिलना तो चाहिए ही।
रोम के बादशाह ने भारत के प्रधान की परीक्षा करने के लिए एक युक्ति रची। उसने अपने ग्यारह गुलामों को भी अपनी ही जैसी पोशाक पहना दी। वारहों आदमी एक समान बैठ गये, जिससे पता न, लगे कि वास्तव में बादशाह कौन है । भारतीय प्रधान रोबदार पोशाक पहनकर रोम की गजसभा में गया । राजसभा पहुंचकर प्रधान ने एक ही, नजर में असली बादशाह को पहचान लिया और उसी को मलामी दी। बादशाह ने पूछा कि तुम मुझे बादशाह ममझते हो तो ये दूसरे लोग कौन हैं ? भारत के प्रधान ने. उत्तर में कहा-हमारे यहां भारत में होली के अवसर पर