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१७२ - सम्यक्त्वपराक्रम ( ४ )
रहते हैं । इसी कारण शास्त्रकार सासारिक पदार्थों के प्रति ममता का भाव न रखने का उपदेश देते हुए कहते हैं कि सासारिक पदार्थों का जितने अश मे त्याग किया जायेगा उतने ही शो मे अधिक आनन्द प्राप्त होगा । वस्तुए तो आखिर नष्ट होने वाली हैं हो, फिर इन नाशशील, वस्तुओ पर ममत्व रखकर क्यो दुखी होना चाहिए ? विनश्वर वस्तुओ का स्वेच्छापूर्वक त्याग कर दिया जाये तो दुःख से बचाव हो जायेगा और श्रात्मसुख भी प्राप्त हो सकेगा ज्ञानोजन अपना अनुभव प्रकट करते हुए कहते हैं कि सासारिक पदार्थ अन्त मे एक न एक दिन अवश्य ही नष्ट होने वाले है, श्रुतएव इन नश्वर पदार्थों का अगर वैराग्यपूर्वक त्याग कर दिया जाये तो अपूर्व आनन्द प्राप्त हो सकेगा । -
कोई प्रश्न कर सकता है कि कितनेक लोगो के पास सोना, चादी आदि घन होने पर भी वे त्यागी जैसे मालूम होते हैं और कुछ लोग घन न होने पर भी त्यागी सरीखे मालूम नही होते । इसका क्या कारण है ?
इस प्रश्न का उत्तर यह है कि अमुक ने वस्तु सम्बन्धी ममत्व का त्याग किया है या नही, यह निश्चय की बात है। इसे हम लोग जान नही सकते । परन्तु जिस व्यक्ति मे जिस वस्तु के प्रति ममत्वभाव न होंगा वह व्यक्ति अपने पास वह वस्तु रखेगा ही क्यो ? मुख्य बात तो यह है कि जिसने अन्त. करण से ममता का त्याग कर दिया होगा वह दुखरहित बन जाएगा । जिसने ऊपर से केवल बाह्य दृष्टि से त्याग होने का दिखावा किया होगा, भीतर से ममताभाव का त्याग नही किया होगा, वह बाहर से भले ही त्यागी जैसा दिखलाई दे, मगर वह दुःखो से मुक्त नही हो