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१६२-सम्यक्त्वपराक्रम (४)
मुनि--किसलिए?
चाडाल.- राजा की आज्ञा के अनुसार वहां तुम्हारा वध किया जायेगा और तुम्हारे शरीर की खाल उतारी जाएगी।
यह हृदयविदारक वचन सुनकर मुनि को आघात पहुचना स्वाभाविक है । परन्तु खधक मुनि को शरीर और आत्मा का भेदविज्ञान था । अतएव वह विचारने लगे-- यह शरीर नश्वर है । किसी न किसी दिन जीर्ण-शीर्ण हो जायेगा । ऐसी स्थिति मे अगर आज ही यह कष्ट होता है तो इसमे मुझे दुख मानने की क्या आवश्यकता है ? मेरा आत्मा तो अजर-अमर है । उसे कोई नष्ट नहीं कर सकता। इस प्रकार विचार करके और धैर्य धारण करके खधक मुनि चुपचाप नौकर के पीछे-पीछे च नने लगे । जब दोनो वधस्थल पर पहचे तो मुनि ने चाण्डाल से कहा--'भाई ! मेरे शरीर में रक्त नहीं है इस कारण चमडी हाडो के साथ चिपट गई है तो खाल उधेडने के लिए कोई साधन साथ मे लाये हो या नही ? अगर कोई साधन नही लाये हो तो तुम्हे बहुत कष्ट होगा ।' मुनि का यह मार्मिक कथन सुनकर वह लज्जित हो गया । वह मन मे विचार करने लगा-- 'कितना पापी हु मैं । मुझे इन पापी हाथो से एक महात्मा के शरीर की खाल उतारनी पडेगी !' वह नम्र भाव से मुनि से कहने लगा - आप महात्मा हैं । आपके हृदय मे मुझ जैसे पापात्मा के प्रति भी करुणा है । परन्तु इस समय मैं निरुपाय हू । मुझे अनिच्छा से और दुखित मन से भी आपके वध का पाप करना पडेगा ।
वघस्थल पर ले जाकर चाडाल ने दुखी हृदय से मुनि