________________
छयालीसवां बोल-१४३
तुम अहमदाबाद में पैसा कमाने आये हो, अत इस उद्देश्य को सिद्ध करने के लिए तुम्हे क्षमाशील और सहनशील रहना ही पड़ता है। जब व्यवहार में भी इस प्रकार की क्षमा
और सहनशीलता की आवश्यकता रहती है तो फिर प्राध्यात्मिक गुणो को टिकाये रखने के लिए क्षमा की आवश्यकता रहना स्वाभाविक ही है । अत्तएव सद्गुणो को अपने आत्मा मे स्थान देने के लिए प्रत्येक आत्महितैषी को सहनशील और क्षमावान् बनना चाहिए । ।
आजकल 'क्षमा' शब्द होस्यास्पद बन गया है । कितनेक लोग क्षमा को निर्बलो का शस्त्र मानते हैं तो कुछ लोग उसे कायरता का चिह्न समझते है । परन्तु वास्तव मे 'क्षमा' निर्बलो का नही वरन् सवलो का अमोघ शस्त्र है और वीर पुरुषो का भूपण है । कायर पुरुषो ने अपनी कायरता के कारण क्षमा को लजाया है, परन्तु सच्चे वीर पुरुषो ने क्षमा को अपनी मुकुटमणि बना कर सुशोभित किया है । क्षमा सवलों का शस्त्र है । कायर लोग क्षमाबल का उपयोग कर ही नहीं सकते । इसी कारण कहा गया है: 'खमा पहुस्स' अर्थात् समर्थ पुरुप ही क्षमा धारण कर सकते हैं ।
क्षमा आध्यात्मिक शब्द है । जहा गौतम स्वामी जैसे प्रश्नकर्ता और भगवान महावीर सरीखे उत्तरदाता हो वहां प्राध्यात्मिक बात के सिवाय दूसरी बात हो ही नही सकती। ऐसे जगदुद्धारक महापुरुषो के प्रश्नोत्तर आध्यात्मिक ही हो सकते हैं | जैसे कोई भोला बालक सादी भाषा मे प्रश्न पूछता है, उसी प्रकार गौतम स्वामी, भगवान से सीधोसादी भाषा में पूछ रहे हैं क्षमा का फल क्या है ? गौतम स्वामी के इस सरल प्रश्न के उत्तर · में भगवान् ने सरल