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१५४-सम्यक्त्वपराक्रम (४) लिए स्वय मैं ही उपालभ का पात्र हूं।
एक दिन सब राजकुमारी के अभ्यास की परीक्षा लेने के लिए पाडु राजा ने एक परीक्षक भेजा । परोक्षा ली जाती है तो होशियार छात्रो को आगे और मन्द छात्रो को पीछे रखा जाता है । इस पद्धति के अनुसार युधिष्ठिर सब राजकुमारो मे बड़े और राज्य के उत्तराधिकारी होने पर भी, पढने में कमजोर होने के कारण सब से पीछे खडे किये गये। इस पर युधिष्ठिर को क्रोध आना स्वाभाविक था, परन्तु उन्हे क्रोध नहीं आया । उन्होने सोचा-~-मैं पढने में भन्द' है और इस कारण पीछे रखना हो ठीक है ।
परीक्षक परीक्षा लेने आया । सब राजकुमारो को देखने के बाद परीक्षक ने शिक्षक से कहा-युधिष्ठिर सब से बड़ा है, फिर भी उसे सब से पीछे क्यो रखा है ?
शिक्षक ने कहा-युधिष्ठिर अभ्यास करने में बहुत मन्द है और इसी कारण उसे पीछे रखा है।
। परीक्षक ने युधिष्ठिर की परीक्षा लेते हुए प्रश्न कियातुमने क्या सीखा है ?
युधिष्ठिर - अभी सयुक्त अक्षर सीख रहा हूं और वाक्य 'बनाने का अभ्यास करता हूँ।
यह सुनकर परीक्षक ने कहा-इतने बड़े हो गये हो और इतने वर्ष पढ़ते-पढ़ते हो गए हैं फिर भी अब तक वाक्य बनाना नहीं पाता। ठीक बताओ कि तुम क्या सीखे हो?
पहले भारतवर्ष मे सस्कृत भाषा प्रचलित थी .लोग संस्कृत भाषा सीखते थे । आज ती संस्कृत भाषा का स्थान अग्रेजी भाषा ने लिया है और संस्कृत भाषा को लोग Dead