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पैतालीसवां बोल-१३३
भेद कहकर यह बतलाया है कि शब्द, रूप, रस आदि विषयों मे से कोई भी विषय मनोज्ञ या अमनोज्ञ प्रतीत न हो तो समझना चाहिए कि आत्मा मे वीतरागता प्रकट हुई है।
यहा प्रश्न हो सकता है कि शब्द आदि मे सचित, अचित्त तथा सचित्ताचित्त का भेद किस प्रकार होता है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि जीव शब्द का अर्थ कहा जाये तो वह शब्द सचित्त है । अजीव शब्द कहा जाये तो वह अचित्त शब्द है और वशी शब्द कहा जाये तो वह सचित्ताचित्त शब्द है । इसी प्रकार रूप, रस, गघ और स्पर्श आदि के भी तीन-तीन भेद हैं। इन तीनो भेदो के साथ वस्तु मनोज है या अमनोज्ञ है, इस प्रकार की मान्यता से निवृत्ति होना वीतरागता है ।
इस सम्बन्ध मे अन्य प्रकार का तर्क भी किया जा सकता है । परन्तु आत्महितैपियो को किसी प्रकार के तर्कवितर्क मे न पडक र ऐसा मानना चाहिए
महाजनो येन गतः स पन्थाः । अर्थात् जिस मार्ग पर महापुरुष चले हैं, उसी मार्ग पर हमे चलना चाहिए और उसी पर चलने मे हमारा कल्याण है।
___ महापुरुषो द्वारा बतलाया मार्ग कौन-सा है ? इस विषय मे एक बार बालगगाधर तिलक तथा भाण्डारकर के बीच वादविवाद हुआ था। भाण्डारकर का कहना था कि जिस मार्ग पर महाजन-समुदाय चलता हो वही महाजन का मार्ग है । इसके विरुद्ध तिलक का कहना था कि जनसमुदाय मे अधिकाश लोग असत्य बोलते हैं, चोरी करते हैं