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एकतालीसवां बोल-८१
प्रत्याख्यान से जीवात्मा को क्या लाभ होता है, इस प्रश्न के उत्तर में महावीर भगवान् ने कहा है-सद्भावप्रत्याख्यान करने से जीवात्मा अनिवत्तिभाव प्राप्त करता है । जो अनिवृत्तिभाव प्राप्त करता है अर्थात् शुक्लध्यान की चौथी श्रेणी पाता है, वह शेष कर्माशो अर्थात् वेदनीयकर्म, आयुकर्म, नामकर्म तथा गोत्रकर्म का क्षय करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो तथा परिनिर्वाण को प्राप्त करके समस्त दुःखो का अन्त करता है । वह अन्तकृत बन जाता है ।
यह मूल प्रश्न का उत्तर है। अब इस उत्तर के विषय ___ मे विशेष विचार करने की आवश्यकता है । यह प्रश्म चौद
हवे गुणस्थान से सम्बन्ध रखता है, अतएव बहुत गम्भीर है । परमार्थभूत-सदभाव-प्रत्याख्यान करने के बाद और कोई प्रत्याख्यान करना शेष नही रहता । यह अन्तिम दशा का प्रश्न है । उदाहरणार्थ---कोई पुरुष पहाड पर चढने लगा। चढते चढते वह अन्तिम शिखर तक पहुच गया। इस अन्तिम शिखर तक पहच जाने वाले मनुष्य के विषय मे यही कहा जा सकता है कि उसे जहां तक चढना था, चढ चुका है । इस प्रकार शिखर पर चढने वाला जब छोटी-छोटी टेकरियो को लाघ चुका तभी वह वहा पहुच सका है। अब वह अन्तिम शिखर तक पहुच गया है । अब उसे कुछ लाधना बाकी नही रहा । इसी प्रकार सद्भावप्रत्याख्यान भी चरम सीमा का प्रत्याख्यान है । मान लो, कोई मनुष्य अनाज का ढेर तोलता है । तोलते-तोलते जब कुछ बाकी नही रहता, -सव तुल जाता है तब तोल की अतिम धारण को चरम धारण कहते हैं । इसी प्रकार जब एक के बाद दूसरा प्रत्याख्यान करते-करते त्याग चरम सीमा पर आता है तब सद्